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भूटान का जलविद्युत लक्ष्य क्यों असफल रहा और यह ऊर्जा की जियो पॉलिटिक्स के बारे में क्या बताता है

भूटान ने 2020 तक 10,000 मेगावाट जलविद्युत क्षमता हासिल करने की योजना बनाई थी। लेकिन इन परियोजनाओं की रफ्तार धीमी हैं। इस कारण परियोजनाओं की लागत, पहले से अनुमानित लागत की तुलना में, तकरीबन एक अरब डॉलर अधिक हो गई है।

चेन्चो डेमा

पंद्रह साल पहले, भूटान ने घोषणा की थी कि वह 2020 तक जलविद्युत से 10,000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन करने में सक्षम हो जाएगा। अब तक, भूटान इस लक्ष्य का एक चौथाई से भी कम उत्पादन करने में ही सक्षम हो पाया है। कुल स्थापित क्षमता 2,326 मेगावाट है, जो 2008 में 1,480 मेगावाट से अधिक है।

10,000 मेगावाट की योजना के तहत चार जलविद्युत संयंत्रों में से केवल एक, मंगदेछु, पूरा हो पाया है और चालू है। अन्य तीन परियोजनाएं, तय समय से वर्षों पीछे चल रही हैं। माना जा रहा है कि पहले, इन परियोजनाओं की लागत का जो अनुमान लगाया गया था, अब उससे एक अरब डॉलर से अधिक की लागत आएगी। फिलहाल, निकट भविष्य में केवल एक परियोजना के चालू होने की उम्मीद है।

योजना में देरी और लागत में वृद्धि का मुद्दा पिछले साल जून में, भूटान की संसद के ऊपरी सदन यानी राष्ट्रीय परिषद में उठाया गया था। इस मौके पर कहा गया था कि इसको लेकर चिंता बढ़ रही है। इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के रिसर्च एनालिस्ट  कल्याणी होनराव ने बताया कि जलविद्युत, जीडीपी में 14 फीसदी और सरकारी राजस्व में 26 फीसदी योगदान देता है। आर्थिक विकास के लिहाज से इस क्षेत्र का विकास बेहद अहम है।

भूटान 10,000 मेगावाट के लक्ष्य को हासिल करने में क्यों विफल रहा, इसके पीछे के प्रमुख कारणों में भूवैज्ञानिक स्थितियों के साथ-साथ प्रशासनिक और वित्तीय समस्याएं भी हैं।

जैसा कि अब माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण बांध परियोजना के डिजाइन पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। भूटान जलविद्युत परियोजनाओं को बहुत महत्व देता आ रहा है। यह अपने यहां की तकरीबन पूरी बिजली इसी माध्यम से पैदा करता है। इसका एक कारण ये भी है कि भूटान में बनी हुई बिजली का खरीददार भारत भी है।

2020 तक 10,000 मेगावाट योजना के तहत परियोजनाओं की स्थिति

‘खराब भूवैज्ञानिक स्थितियों’ से परियोजनाओं में देरी होती है

भूटान के ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन मंत्री लोकनाथ शर्मा ने द् थर्ड पोल को बताया कि 2008 में भारत और भूटान ने संयुक्त रूप से 2020 तक 10,000 मेगावाट के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की थी। दरअसल, यह दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा था। साथ ही, इससे ऐतिहासिक जुड़ाव और आपसी संबंधों को भी मजबूती मिलनी थी। भारत 2020 के बाद, सहायता व धन उपलब्ध कराने और भूटान की अतिरिक्त बिजली खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है।

भूटान के जलविद्युत क्षेत्र की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी ड्रुक ग्रीन पावर कॉरपोरेशन (डीजीपीसी) के प्रबंध निदेशक छेवांग रिनजिन ने कहा: “1,200 मेगावाट की पुनातसांगचू I और 1,020 मेगावाट की पुनातसांगचू II परियोजनाएं … खराब भूगर्भीय परिस्थितियों का सामना कर रही हैं। इसलिए उनमें देरी हो रही है।”

इनके पूरा हो जाने पर, भूटान में स्थापित क्षमता के मामले में, दोनों पुनातसांगचू परियोजनाएं सबसे बड़ी होंगी। पुनातसांग्चू II परियोजना लगभग पूरी हो चुकी है, और अक्टूबर 2024 में इसके चालू होने जाने की संभावना है। यह लगभग सात साल देर से चालू होगी।

पुनातसांगचू I परियोजना को 2016 में पूरा किया जाना था, लेकिन ढलानों के अस्थिर होने से दुर्घटनाएं हुईं। इसका अधिकांश काम पूरा हो चुका है, लेकिन इसके चालू होने की कोई तारीख नहीं बताई गई है।

मंत्री शर्मा ने कहा: “जलविद्युत परियोजनाओं में न केवल भारी पूंजी लगती है बल्कि इनके चालू होने में काफी समय भी लगता है। हिमालयी क्षेत्र काफी नया है और इसका भूविज्ञान काफी नाजुक है। ऐसे में, जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। उन्होंने कहा, “इन जटिल प्रतिकूल भूवैज्ञानिक चुनौतियों के कारण परियोजनाओं में देरी हुई है। इससे समय और लागत में वृद्धि हुई है।”

नागरिक समाज के भीतर इसे लेकर चिंताएं हैं। पर्यावरणविद् और प्रमुख ब्लॉगर, येशी दोरजी ने कहा: “हमें अपनी जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में हमेशा गुमराह किया गया है। परियोजनाओं के स्थान गलत हैं – वे बाजार से बहुत दूर हैं; पूर्व-संभाव्यता अध्ययन और भूवैज्ञानिक जांच घटिया और शौकिया तौर पर थी।

शर्मा ने बताया कि भारत और भूटान चल रही परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए काम कर रहे हैं।

भूटान में बड़े जलविद्युत संयंत्र

लालफीताशाही का असर

प्रशासनिक कारणों से भी इन परियोजनाओं में देरी हुई। 2020 तक 10,000 मेगावाट क्षमता की पहल से पहले, भारत समर्थित जलविद्युत संयंत्रों को अंतर-सरकारी परियोजनाओं यानी इंटरगवर्नमेंटल प्रोजेक्ट्स के रूप में लागू किया गया था। इसके तहत, भारत की तरफ से अनुदान और ऋण के रूप में धन मुहैया कराने और भूटान द्वारा इन परियोजनाओं को शुरू करने की बात थी। वर्ष 2008 में सहमत योजना के तहत, यह इंटरगवर्नमेंटल ज्वाइंट वेंचर्स में बदल गया। एक इंटरगवर्नमेंटल ज्वाइंट वेंचर के रूप में शुरू की जाने वाली पहली परियोजना 600 मेगावाट क्षमता वाली खोलोंगचू थी। इसमें दोनों देशों की सार्वजनिक क्षेत्र की जलविद्युत कंपनियां शामिल थीं। इसमें भारत के सतलुज जल विद्युत निगम (एसजेवीएन) और भूटान के डीजीपीसी को शामिल किया गया। इसका वित्त पोषण भारत सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा किया गया।

उम्मीद यह थी कि कॉरपोरेट संस्थाएं तेजी से काम करेंगी और इस तरह से परियोजनाओं पर तेजी से काम हो सकेगा। चूंकि दोनों कॉरपोरेट संस्थाएं, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम थे, इसलिए ज्वाइंट वेंचर व्यवस्था की व्याख्या में, किसी भी मतभेद को दोनों सरकारों को रेफर किया जाना था।

शेयरधारकों के बीच बड़े मतभेद और वोटिंग में 50:50 के बंटवारे के कारण व्यवधान पैदा हुआ। इसके बाद, खोलोंगचू के लिए ज्वाइंट वेंचर डील पर 2020 में हस्ताक्षर हो पाया। फरवरी में, यह घोषणा की गई थी कि डीजीपीसी अकेले खोलोंगचू परियोजना को पूरा करेगा, और एसजेवीएन अपनी हिस्सेदारी, ज्वाइंट वेंचर कंपनी में डीजीपीसी को स्थानांतरित करेगा।

शर्मा ने द् थर्ड पोल को बताया: “बदलते ऊर्जा परिदृश्य और क्षेत्र में विकसित होते बिजली बाजार के साथ, दोनों पक्ष कार्यान्वयन के ज्वाइंट वेंचर मोड को लेकर पुनर्विचार कर रहे हैं क्योंकि यह दोनों देशों के हित में काम नहीं कर रहा है।”

परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती है

जून 2022 की राष्ट्रीय परिषद की चर्चा में यह तथ्य सामने आया कि पुनातसांगचू I परियोजना की लागत 35.15 अरब भूटानी नगुल्टम (3500 करोड़ रुपए) थी, और अब इसकी लागत 93.76 अरब भूटानी नगुल्टम (94 मिलियन रुपए)। और अब भी यह नहीं कहा जा सकता है कि इतनी लागत में परियोजना का काम पूरा हो जाएगा। खोलोंगचू परियोजना की मूल लागत 33.05 अरब भूटानी नगुल्टम (3300 करोड़ रुपए) थी, जो अब 54.82 अरब भूटानी नगुल्टम (5500 करोड़ रुपए) हो गई है। इस मामले में भी यह नहीं कहा जा सकता कि परियोजना की लागत अभी और नहीं बढ़ेगी।

93.76 अरब भूटानी नगुल्टम

अब पुनातसांगचू I की ये लागत है। अभी भी यह नहीं कहा जा सकता कि इतनी ही लागत से परियोजना का काम पूरा हो जाएगा।

पुनातसांगचू I को भारत से 40 फीसदी अनुदान और 60 फीसदी ऋण के साथ वित्त पोषित किया गया था। वहीं, पुनातसांगचू II के मामले में 30 फीसदी अनुदान और 70 फीसदी ऋण की बात थी।

ऋण पर वार्षिक ब्याज दर 10 फीसदी है। दिसंबर 2022 के अंत तक, जलविद्युत ऋण, भूटान के बाहरी ऋण का लगभग 70 फीसदी और सकल घरेलू उत्पाद का 80 फीसदी से अधिक था। परियोजनाओं के लंबे समय तक अटके रहने और लागत में भारी इजाफे के चलते वित्तीय स्थिरता पर दबाव बढ़ गया। एक पर्यावरणविद, येशे दोरजी ने द् थर्ड पोल के साथ बातचीत में इस ऋण को लेकर नाराजगी प्रकट की। उनका कहना है कि लागत बढ़ने का खास कारण इन परियोजनाओं का लंबा खिंचना है।

हालांकि, भारत द्वारा खरीदी गई बिजली के मूल्य निर्धारण का अर्थ है कि भूटान, भारतीय वित्त पोषण से बनाए गए बांधों की लागत से ऊपर 15 फीसदी शुद्ध रिटर्न हासिल करता है। साल 2020 तक 10,000 मेगावाट की चार परियोजनाओं की लागत संरचना यानी कॉस्ट स्ट्रक्चर में इसकी गारंटी है। इसीलिए विश्व बैंक सहित बाहरी टिप्पणीकारों ने कहा है कि वे ऋण को टिकाऊ यानी सस्टेनेबल मानते हैं।

डीजीपीसी के रिनजिन ने कहा कि लागत बढ़ने के बावजूद, परियोजनाओं की प्रति मेगावाट स्थापित क्षमता लागत, इस क्षेत्र में और किसी अन्य जगह भी, या तो कम है या कम से कम प्रतिस्पर्धी बनी हुई है।

जलवायु परिवर्तन एक अन्य कारक है जो लागत को और बढ़ा सकता है। इसीलिए  डिजाइन में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है। रिनजिन का कहना है कि भूटान अधिक क्लाइमेट-रेजिलिएंट और सस्टेनेबल हाइड्रोपावर स्कीम्स की तलाश कर रहा है जैसे कि पंप्ड स्टोरेज और सीजनल स्टोरेज। वैसे, इसके लिए अधिक इंजीनियरिंग कार्य की आवश्यकता होती है और यह बहुत अधिक महंगा है।

फरवरी 2023 में भारत के नवीनतम बजट में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि देश, पंप्ड स्टोरेज हाइड्रोपावर पर ध्यान देगा।

जलाशय के साथ, पहली भूटानी जलविद्युत परियोजना, 2,585 मेगावाट क्षमता वाली संकोश होगी। मूल रूप से, 30 से अधिक साल पहले इसकी कल्पना की गई थी और अभी भी योजना के स्तर पर, संकोश परियोजना वर्षों से विवादों में घिरी हुई है।

रिनजिन ने कहा, “संकोश परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए दोनों सरकारों के स्तर पर नए सिरे से रुचि है। 2,640 मेगावाट की कुरी-गोंगरी के लिए डीपीआर को भी अंतिम रूप दे दिया गया है।” कुरी-गोंगरी परियोजना, जिसका शुरू में रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना के रूप में प्लान किया गया था, अब एक जलाशय-आधारित बांध के रूप में परिकल्पित है। वैसे तो, संकोश और कुरी-गोंगरी परियोजनाओं पर चर्चा चल रही है और जांच-परख भी की जा रही है, लेकिन उन्हें बनाने के लिए अभी तक किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं।

रिनजिन यह भी कहते हैं, “पंप्ड हाइड्रोपावर के लिए वाटर रिजर्वायर बनाने की स्थिति में हमेशा एक चिंता होती है कि यूरोप की तुलना में हिमालय, अधिक नाजुक और कम आयु का है। पंप्ड स्टोरेज के लिए रिजर्वायर का आकार, प्लान किए गए संकोश और कुरी गोंगरी परियोजनाओं के लिए [के लिए] बहुत छोटा हो सकता है।”

देरी का मतलब है कि भूटान को बिजली का आयात करना होगा

साल 2008 में, भूटान ने इस उम्मीद के साथ अपने जलविद्युत संयंत्रों का उपयोग शुरू किया था कि इससे उसका खुद का विकास होगा और बाकी बिजली वह निर्यात कर सकेगा। कुछ संयंत्र शुरू भी हुए लेकिन यह अभी भारत से बिजली का शुद्ध आयातक है।

साल 2021 से पहले, भारत से भूटान के लिए आयातित बिजली न्यूनतम थी और निर्यात द्वारा संतुलित हो जाती थी।

तब से, हालांकि, एनर्जी-इंटेंसिव उद्योगों की स्थापना में तेजी आई है क्योंकि भूटान ने अपने पासाखा शहर में एक नया ड्राई पोर्ट स्थापित किया है। साथ ही, भारत-भूटान सीमा के पास जिगमेलिंग और मोटांगा औद्योगिक पार्कों का विस्तार किया है। डीजीपीसी के मुताबिक, इसने देश की कुल बिजली मांग को बढ़ा दिया है। सर्दियों के मौसम में, घरेलू स्तर पर बिजली की मांग को पूरा करना, भूटान के लिए काफी मुश्किल होता है, जब पानी का प्रवाह कम होता है और भूटान के रन-ऑफ-द-रिवर डैम अपनी कुल 2,336 मेगावाट स्थापित क्षमता में से केवल 415 मेगावाट की गारंटी दे सकते हैं।

जनवरी से मार्च 2022 के बीच देश को इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (आईईएक्स) से बिजली खरीदनी थी।

अब तक, भूटान अपेक्षाकृत सस्ती बिजली खरीदने में सफल रहा है। भूटान के आयात अवधि के दौरान आईईएक्स पर, प्रति किलोवाट घंटे की, मार्केट क्लियरिंग प्राइस (एमसीपी) 14 रुपये (0.17 डॉलर) को छू रही है जबकि उसको प्रति किलोवाट घंटे के लिए 3.32 रुपये (0.04 डॉलर) रुपये की चुकता करने पड़े।

चेवांग रिनजिन चेतावनी देते हुए कहते हैं कि “भूटान, जनवरी से अप्रैल और दिसंबर 2023 के दौरान फिर से बिजली का आयात करेगा। एमसीपी के बहुत अधिक होने की उम्मीद है। ऐसे में, यह भी शायद मुद्दा बन जाए कि आयात की गई बिजली के लिए भूटान के उपभोक्ताओं की सामर्थ्य है भी या नहीं।”

उन्होंने यह भी कहा कि आयात को सुविधाजनक बनाने के लिए, भूटान की पूरी बिजली व्यवस्था भी, भारत के डेविएशन सेटलमेंट मैकेनिज्म रेगुलेशंस के तहत आएगी। और अगर भूटान, बिजली की मांग का अनुमान और प्रबंधन नहीं कर सकेगा, तो जुर्माने के प्रावधानों से भारी देनदारियां पैदा हो सकती हैं।

डेविएशन सेटलमेंट मैकेनिज्म (डीएसएम) क्या है

रिनजिन का कहना है कि भूटान जैसे छोटे देश के लिए, आयात शुल्क और डेविएशन की स्थिति में पेनाल्टी, भारी वित्तीय बोझ साबित हो सकता है।

मंत्री लोकनाथ शर्मा ने कहा: “यूटिलिटी-स्केल सोलर-प्रोजेक्ट्स के विकास के साथ चल रही परियोजनाओं को पूरा होने से, हम साल भर नेट सरप्लस बने रहने का प्रयास करेंगे। हम सक्रिय रूप से कुछ रिजर्वायर्स एंड पंप स्टोरेज के विकास पर भी काम कर रहे हैं। भूटान और भारत के बीच, बिजली व्यापार, रिसोर्स एनडाउमेंट्स यानी संसाधन उपलब्ध कराने और ऊर्जा की विविधता का लाभ उठाकर ही बढ़ेगा।

हाइड्रोपॉवर से दूर विविधता लाने की ज़रूरत

एक सम्मेलन के दौरान 13 अक्टूबर, 2022 को भूटान की मिनिस्ट्री ऑफ एनर्जी एंड नेचुरल रिसोर्सेज के अंतर्गत आने वाली डिपार्टमेंट ऑफ रेनूअबल एनर्जी एग्जीक्यूटिव इंजीनियर डेचन डेमा ने कहा कि ऊर्जा के केवल एक स्रोत पर निर्भर रहने से भविष्य में दिक्कत आ सकती है।

शर्मा ने द् थर्ड पोल को बताया कि जलविद्युत को नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है। भूटान की सतत जलविद्युत विकास नीति, उदाहरण के लिए 2020, जलविद्युत के साथ-साथ हरित हाइड्रोजन के विकास पर जोर देती है। यह एक या दो नदी प्रणालियों को तब तक बांध मुक्त रखने की भी सिफारिश करती है जब तक कि मौजूदा परियोजनाएं लाभदायक न हों।

ईआईयू के होनराव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए भूटान का बिजली क्षेत्र, जलविद्युत उत्पादन में मौसमी उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है। ऐसे में, सरकार को ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने के लिए कदम उठाने चाहिए। द् थर्ड पोल ने इस स्टोरी में उठाए गए मुद्दों के बारे में भूटान में भारतीय राजदूत से संपर्क किया लेकिन प्रकाशन के समय तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी।

 साभारः दथर्डपोलडॉटनेट

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