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राहुल गांधी का लॉन्ग मार्च

जो लोग इस यात्रा को चुनावी संदर्भ में देख रहे हैं, उन्हें चुनाव नतीजे आने पर गहरा झटका लग सकता है। असल में जो लोग इसे एक लॉन्ग मार्च के रूप देख पा रहे हैं, वे इसकी अहमियत को बेहतर ढंग से समझने की स्थिति में हैं।

भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में आरंभिक दिनों का अनुभव यह बताता है कि राहुल गांधी और उनके साथी यात्री समाज के एक बड़े तबके के मनोभव को छूने में सफल हो रहे हैँ। कर्नाटक इसलिए खास है, क्योंकि यात्रा की राह में यह पहला राज्य है, जहां भारतीय जनता पार्टी शासन में है। इसके बावजूद ना तो यात्रा का प्रभाव घटा है और ना ही इसकी गति टूटी है। रविवार को भारी बारिश के बीच हजारों लोगों की सभा को जिस तरह राहुल गांधी ने संबोधित किया, उसके बाद लोग यह भी कहने लगे हैं कि एक नेता का उदय हो रहा है। यात्रा की खूबी संभवत: यह है कि जो लोग वर्तमान केंद्रीय सरकार के शासन में घुटन महसूस कर रहे हैं, इस यात्रा में भाग लेकर (या इसमें लोगों की भागीदारी देख कर) उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक अवसर मिल रहा है।

इसके बावजूद ऐसे अनुमानों में कोई दम नहीं है कि इस यात्रा के कारण कांग्रेस का चमत्कारिक पुनर्जन्म हो जाएगा और 2024 के आम चुनाव में पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में पहुंच जाएगी। फिलहाल, यह बात पूरे भरोसे कही जा सकती है कि जो लोग इस यात्रा को चुनावी संदर्भ में देख रहे हैं, उन्हें चुनाव नतीजे आने पर गहरा झटका लग सकता है। असल में जो लोग इसे एक लॉन्ग मार्च के रूप देख पा रहे हैं, वे इसकी अहमियत को बेहतर ढंग से समझने की स्थिति में हैं। खुद राहुल गांधी के बयानों पर गौर करें, तो यह साफ होता है कि वे इस यात्रा पर इसलिए निकले, क्योंकि उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया गतिरुद्ध और इससे बदलाव की संभावना न्यूनतम नजर आने लगी थी।

तो वे एक ऐसी यात्रा पर निकले हैं, जिसमें लंबे समय से समाज के पुनर्निर्माण की संभावना तो है, लेकिन जिसमें कोई इंस्टैंट करिश्मा कर डालने की क्षमता नहीं है। यह जरूर है कि यात्रा के घोषित उसूलों के मुताबिक अगर समाज में नई शुरुआत होती है, तो उसका अंतिम परिणाम राजनीतिक बदलाव के रूप में भी जरूर आएगा। लेकिन यह लंबे समय की बात है।

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