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भारत जोड़ो यात्रा का फल

अजय दीक्षित
राहुल गांधी और कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा समाप्त हुई। यात्रा 4000 किलोमीटर से अधिक रही। यदि जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्रशेखर की पदयात्रा को अतीत मान लिया जाए, तो इतना पैदल सफर किसी अन्य राजनीतिज्ञ ने तय नहीं किया। इसका पूरा श्रेय राहुल गांधी की मानसिक दृढ़ता और इच्छा-शक्ति को जाता है। उन्होंने श्रीनगर के ऐतिहासिक लाल चौक पर तिरंगा फहराया। राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी। राष्ट्रगान भी गाया। अंतत: भारतीयता सम्मानित हुई। श्रीनगर में एकदम शांति और सद्भाव का माहौल लगा। कोई पत्थरबाजी नहीं की गई। हुर्रियत का 1 अलगाववाद समाप्त किया जा चुका था। आतंकवाद को भी कुचला जा रहा है।

चारों ओर तिरंगा लहरा रहा था। पाकिस्तान का झंडा नदारद रहा। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने जब 26 जनवरी, 1992 को लाल चौक पर तिरंगा फहराया था, तो चारों ओर बम, बारूद और बंदूकें ही थीं। अब माहौल पूरी तरह बदला है, राहुल गांधी को यह यथार्थ स्वीकार करना चाहिए और अनुच्छेद 370 पर विवादित बयान देने से बचना चाहिए। भारत की संसद ने यह निर्णय लिया था कि 370 को खारिज किया जाए। राहुल ने बार-बार यह उल्लेख किया है। कि भारत मुहब्बत और भाईचारे का देश है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और आरएसएस पर हिंसा और नफरत के लगातार आरोप भी मढ़े हैं। राहुल ने यह भी कबूल किया है कि यात्रा के दौरान उन्हें नफरत और हिंसा कहीं नहीं दिखाई दिए। इससे बड़ा यात्रा का विरोधाभास और क्या हो सकता है? उनकी यह टिप्पणी बिल्कुल गैर- जिम्मेदाराना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हिंसा कराई। राहुल ने यह टिप्पणी कश्मीर में एक सार्वजनिक मंच से की, जिसका दुरुपयोग पाकिस्तान कर सकता है।

सवाल है कि किन साक्ष्यों के आधार पर देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ राहुल गांधी इस निष्कर्ष तक पहुंचे? किस अदालत में प्रधानमंत्री के खिलाफ आपराधिक केस विचाराधीन है या कौन जांच कर रहा है? प्रधानमंत्री भी सामान्य कानून की परिधि में आते हैं। दरअसल यह राहुल की और कांग्रेस की मानसिक, पूर्वाग्रही धारणा हो सकती है। यदि राहुल कांग्रेस के शासन काल का इतिहास पढ़ें, तो परत दर परत सच सामने खुल जाएगा कि उस दौर में कितने दंगे हुए? कितने भारतीय मार दिए गए? कितना उग्र और व्यापक आतंकवाद था? सिर्फ भाजपा-संघ को कोस कर और खोखले आरोप मढ़ कर राहुल और कांग्रेस, किसी भी स्तर पर, देश को जोड़ नहीं सकते। पाखंड या दावे जरूर किए जा सकते हैं। बेशक इस तथ्य को स्वीकार न किया जाए, लेकिन यह राहुल गांधी के राजनीतिक ब्रांड की यात्रा थी। यह प्रभाव पैदा करने में राहुल और कांग्रेस सफल रहे हैं कि राजनीतिक तौर पर वह परिपक्व हो रहे हैं। अब वह पलायनवादी नहीं रहे।

बेशक राहुल की छवि का विस्तार हुआ है, उसमें काफी सुधार हुआ है। यह भी सुखद संकेत है कि जहां से यात्रा गुजरती रही, वहां कांग्रेस का काडर सक्रिय दिखाई दिया। यानी कांग्रेस का संगठन अब भी जिंदा है, बेशक सुप्तावस्था में चला गया था। कांग्रेस अपने काडर को कितना जोड़ कर, सक्रिय और जि़ंदा रख पाती है, यह देखना अभी शेष है। लेकिन यात्रा के दौरान मिला चौतरफा समर्थन चुनावी जनादेश में परिणत होगा या नहीं, लोकसभा में सांसदों का आंकड़ा क्या होगा और 10 से अधिक राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहेगा, ये यथार्थ अभी सामने आने हैं ।

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