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भारत में डिजिटल भुगतान की सुविधा

अजय दीक्षित
हाल के वर्षों में भारत ने अपनी शासन व्यवस्था में तकनीकी क्रांति को देखा है । सरकारी सेवाओं को धीरे धीरे और लगातार तकनीक के साथ जोड़ा जा रहा है और आज अंतिम व्यक्ति तक सेवाएं माउस के केवल एक क्लिक के साथ कुछ ही सेकंडों में पहुंच रही हैं । वित्तीय क्षेत्र और अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनाने की भारत सरकार की रणनीति के मद्देनजर पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल भुगतान लेन-देन लगातार बढ़ रहे हैं । भारत के परिवर्तित डिजिटल भुगतान परिदृश्य के केन्द्र में प्रमुख प्रवर्तक जैम ट्रिनिटी— जन धन, आधार और मोबाइल है । प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) दुनिया में सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन पहलों में से एक है, जिसे अगस्त, 2014 में शुरू किया गया था, ताकि बैंकिंग सेवाओं से दूर प्रत्येक परिवार को इसके दायरे में लाया जा सके। जन-धन खातों, आधार और मोबाइल सेवाओं ने एक साथ मिलकर ‘डिजिटल इण्डिया’ की नींव रखने में मदद की है, जिसके माध्यम से बिना किसी बिचौलिए के नागरिकों तक सरकारी सेवाओं को सुगमता से पहुंचाया जा रहा है ।

डिजिटल इंडिया का एक प्रमुख उद्देश्य ‘फेसलेस, पेपरलेस, कैशलेस’ सेवाओं के लक्ष्य को हासिल करना है । हमारे देश के प्रत्येक वर्ग को डिजिटल भुगतान सेवाओं के दायरे में लाने के लिए भारत सरकार द्वारा डिजिटल भुगतान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है । इसका उद्देश्य भारत के सभी नागरिकों को सुविधाजनक, आसान, किफायती, त्वरित और सुरक्षित तरीके से निर्बाध डिजिटल भुगतान की सुविधा प्रदान करना है । पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत में डिजिटल भुगतान लेन-देन में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है । डिजिटल भुगतान के आसान और सुविधाजनक तरीके जैसे भारत इंटरफेस फॉर मनी – यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (भीम-यूपीआई); तत्काल भुगतान सेवा (आईएमपीएस ); से प्री-पेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (पीपीआई) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (एनईटीसी) सिस्टम में पर्याप्त वृद्धि दर्ज की है और व्यक्ति-से-व्यक्ति (पीटूपी) के साथ-साथ व्यक्ति-से-व्यापारी (पीटूएम) भुगतानों को गति देकर डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र को बदला जा रहा है ।

भारत सरकार ने डिजिटल भुगतान समाधान ई-रुपी भी लॉन्च किया, जो डिजिटल भुगतान के लिए एक कैशलेस और सम्पर्क रहित साधन है, जिससे देश में डिजिटल लेनदेन में बढ़ोत्तरी के साथ ही प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) को और अधिक प्रभावी बनाया गया है । इन सभी सुविधाओं ने मिलकर एक डिजिटल वित्त अर्थव्यवस्था के लिए मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया है । यूपीआई को भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में एक क्रांतिकारी उत्पाद बताया गया है । इसका शुभारंभ 2016 किया गया, यह आज डिजिटल लेनदेन करने के लिए देश में सबसे लोकप्रिय उपकरणों में से एक के रूप में उभरा है । यूपीआई ने डिजिटल भुगतान को एक आदत बनाने और भारत को कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर मजबूती से खड़ा करने में एक लम्बा

सफर तय किया है । अकेले अगस्त, 2022 में 346 बैंक यूपीआई इंटरफेस पर मौजूद थे, जिसके माध्यम से 6.58 बिलियन वित्तीय लेनदेन हुए हैं, जिसका कुल मूल्य 10.73 लाख करोड़ रुपये है । यूपीआई के माध्यम से वर्तमान में 40 प्रतिशत से अधिक डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं । यूपीआई का लाभ छोटे व्यवसायों और रेहड़ी-पटरी वालों को भी हुआ है, क्योंकि इसके माध्यम से कम राशि के लेनदेन को भी तेजी से और सुरक्षित तरीके से किया जा सकता है । यह प्रवासी श्रमिकों के लिए त्वरित धन हस्तांतरण की सुविधा भी प्रदान करता है ।

भारत लगभग 40 प्रतिशत रीयल-टाइम डिजिटल भुगतान के साथ दुनिया में सबसे आगे है ।  वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान भारत में डिजिटल भुगतान में साल-दर-साल 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई है । भारत ने 2021 (48.6 बिलियन) में वास्तविक समय के लेनदेन की सबसे बड़ी संख्या को हासिल किया है- यह निकटतम चुनौती देने वाले चीन (2021 में 18 बिलियन लेनदेन) की तुलना में लगभग तीन गुना और दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाएं- अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी (7.5 बिलियन) के संयुक्त वास्तविक समय भुगतान की तुलना में लगभग सात गुना अधिक है । यूपीआई के माध्यम से जुलाई में 6.28 बिलियन लेन-देन हुए, जिसका कुल मूल्य 10.62 ट्रिलियन रुपये था, जो 2016 में शुरुआत के बाद से सबसे अधिक है । बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का डिजिटल भुगतान बाजार 2026 तक तीन ट्रिलियन डॉलर से बढक़र 10 ट्रिलियन डॉलर हो जायेगा । डिजिटल भुगतान (गैर-नकद) 2026 तक सभी भुगतानों का लगभग 65 प्रतिशत होगा, यानी 3 में से 2 लेनदेन डिजिटल होंगे ।

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