उत्तराखंड की सभी विधानसभा क्षेत्रों में बिना भेद-भाव के एक समान विकास पर सीएम धामी का फोकस
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के मूलमंत्र की अभूतपूर्व पहल
विकास को लेकर मुख्यमंत्री की सोच स्पष्ट है। पहाड़ हो या मैदान, सत्तधारी दल के विधायक का विधानसभा क्षेत्र हो या विरोधी दल के विधायक का, प्रत्येक क्षेत्र का योजनाबद्ध एवं चरणबद्ध रूप से विकास किया जाना है। इसी क्रम में दलगत सियासत से ऊपर उठकर मुख्यमंत्री धामी ने सभी 70 विधायकों से राज्य के विकास में सहयोग का आग्रह किया है। इसके लिए उन्होंने विधायकों को बाकायदा पत्र जारी भेजा है। पत्र में अनुरोध किया है कि अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र की व्यापक जनहित से जुड़ी 10 विकास योजनाओं के प्रस्ताव उन्हें भेजें, ताकि शासन स्तर पर राज्य के आर्थिक संसाधनों के समुचित प्रबन्धन के साथ प्रस्तावित योजनाओं को मूर्त रूप दिया जा सके।
मुख्यमंत्री धामी की यह अभूतपूर्व पहल है। कम से कम उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य में तो राजनीतिक कटुता का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के दायित्वों को स्पष्ट बंटवारा है। विपक्ष का काम सत्तापक्ष के कार्यों की समीक्षा, विश्लेषण और आलोचना करना है। यह उसका संवैधानिक दायित्व भी है। जबकि सत्ता पक्ष का काम विपक्ष के प्रत्येक सवाल का जवाब जिम्मेदारी से देना है। इन सबके बीच जनता के प्रति दोनों की जवाबदेही सर्वोपिर है। तभी तो कहा गया है कि कम से कम सदन के बाहर किसी प्रकार का पक्ष-विपक्ष नहीं होना चाहिए।
हमेशा सरकार के सभी निर्णय शत-प्रतिशत सही हों यह जरूरी नहीं है पर विपक्ष का कमजोर होना, लिए गए निर्णयों में अपनी बात न रखना, स्वयं के कमजोर होने के साथ-साथ प्रजातंत्र को कमजोर करता है। ठीक इसी तरह जनतंत्र की खासियत यह भी है कि विजेता पार्टी सत्ता में शासन करती है, पर इसका मतलब कतई यह नहीं है कि विपक्ष को हासिये पर धकेल दिया जाए। जनसरोकारों को लेकर विपक्ष को हमेशा ध्वजवाहक की भूमिका में होना चाहिए। उसे सरकार के फैसलों को आम जनता के हितों से जोड़ कर देखना चाहिए और गलत पाए जाने पर उसका संगठित विरोध करना चाहिए।